उदास मन की गगरी से छलक कर, आँखों से जो बह पड़ता है, निराश आँखों से बहता हुआ, क्या ये व्यर्थ सा है? नीले आकाश में उस अकेले बादल जैसा, जो कभी इधर उड़ता है, कभी उधर उड़ता है । जहाँ ठहरता है, वहीँ बरस पड़ता है । कभी अकेले बैठो तो सोचना, इसका अर्थ क्या है? चेहरा गीला कर जाये, पर मन हल्का करता है । अगर सूख जाये, तो हृदय पत्थर करता है । किसी और के हो, तो, बेवजह और व्यर्थ लगता है । इनका असली अर्थ कौन समझता है ? बेरंग सा है, बदरंग सा लगता है । मन के दरिया में जब सैलाब सा उमड़ता है, आँखों के कोनो से ये बह पड़ता है । मन के सारे रंग उतर जाये, तब इनमें रंग चढ़ता है । कभी बेरंग सा लगता है । कभी बदरंग सा लगता है । सुख में उमड़ता है, दुःख में उमड़ता है, हर रंग में ढलता है । फिर भी बेरंग सा लगता है । शोक में, हार में, क्रोध में, भूख में, द्वेष में, ग्लानि में या भय में, जब ये छलकता है, क्या कमज़ोर सा लगता है? कभी कोई पूछे तो कहना, "हर बाँध तोड़ कर जब ये बह जाता है, तब भी क्या व्यर्थ सा लगता है?" कभी इस दरिया में यादों की कश्तिय...
Everyday has a new beginning. The day which passed had something to teach and the new day has something to give. This world always inspires so, just trying to keep getting inspired. Trying to finish something which was incomplete only to find completeness.