श्रम के बंधन को तोड़ चला,
उड़ चला बचपन उसका |
जूठे प्लेटों को तोड़ चला,
चुलबुला बचपन उसका |
माँ के आँचल से निकल कर,
दूर चला,
दूर चला बचपन उसका |
पतले पतले पैरों पे,
टूटी-फटी चप्पल पहने,
मुँह मोड़ चला,
मुँह मोड़ चला बचपन उसका |
पुराने फटे कपड़ो में,
पेट में भूख की गर्जन लिए,
आँखें मूंदे सो रहा,
सो रहा बचपन उसका |
अब कोई चिंता नहीं,
मालिक की दुकान पर, कल वो न जायेगा,
ना मारेगा उसे कोई,
ना हसी कोई उड़ाएगा,
जीवन की कठोरता, वो और नहीं सेह पायेगा |
आज जो सो गया है वो,
कोई न उठा पायेगा |
छोड़ चला, सब छोड़ चला,
सब छोड़ चला बचपन में ही,
अब जो पंख लगे हैं उसके,
नीले आकाश में उड़ता जायेगा |
उड़ चला बचपन उसका |
जूठे प्लेटों को तोड़ चला,
चुलबुला बचपन उसका |
माँ के आँचल से निकल कर,
दूर चला,
दूर चला बचपन उसका |
पतले पतले पैरों पे,
टूटी-फटी चप्पल पहने,
मुँह मोड़ चला,
मुँह मोड़ चला बचपन उसका |
पुराने फटे कपड़ो में,
पेट में भूख की गर्जन लिए,
आँखें मूंदे सो रहा,
सो रहा बचपन उसका |
अब कोई चिंता नहीं,
मालिक की दुकान पर, कल वो न जायेगा,
ना मारेगा उसे कोई,
ना हसी कोई उड़ाएगा,
जीवन की कठोरता, वो और नहीं सेह पायेगा |
आज जो सो गया है वो,
कोई न उठा पायेगा |
छोड़ चला, सब छोड़ चला,
सब छोड़ चला बचपन में ही,
अब जो पंख लगे हैं उसके,
नीले आकाश में उड़ता जायेगा |
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