सुबह की नरम हवाओं जैसे
दबे पांव चले आते हैं
कुछ ख़्याल , कुछ क़िरदार और कुछ कहानियां
ये न जाने कितने झरोखे खोल जाते हैं
इन ख़्यालों को मैं एक धागे से जोड़ता जाता हूँ
उन्हें जोड़कर मैं उनसे नग़मे बनता हूँ
हर रोज़…
नए किरदार मुझसे मिलने आते हैं
कभी अपने कुछ ख़्वाब
कभी अपनी चिट्ठियां सुनते हैं
उनकी नज़रों से मैं उनके ख़्वाब देखता हूँ
दोपहर की धुप-छाँव में, अपनी खिड़की से…
उनकी चिट्ठियों में बांध किस्से सुनता जाता हूँ
हर रोज़, दिन थक कर
शाम की चादर ओढ़ लेती है
पर किसी रोज़ जो नींद न आये
तो अपने दिल के राज़ बताती है
मैं ख़ामोश बैठ कर सुनता हूँ
अपने मनन में छुपाये कई सवाल, कई शिक़ायतें मुझे सुनती है
मैं उनके मनन की सारी बातें, सुनता जाता हूँ
आते हैं जब ये सारे मुझसे मिलने
मैं अकेला बैठा भी मुसकुराता हूँ
कुछ ख़्याल , कुछ क़िरदार और कुछ कहानियां…
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