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Showing posts from June, 2018

ये जो माँ होती है

ये जो माँ होती है, अपने दिन-रात खोती है । बच्चों के आँसू पोंछ कर, खुद चुप-चाप रोती है । चलती है धुप में, हमें छाओं देती है । ये जो माँ होती है, सब चुप-चाप सेहती है । चूल्हे की आंच में, रोटियों के साथ तपती है । खिला कर पेट भर हमें, खुद भूखी सोती है । ये जो माँ होती है, सब चुप-चाप सेहती है । सब की खुशियों के लिए, अपने सुख भूलती है । सारे दुःख भुला कर, मुस्कुराना सीखती है । शब्दों में समझाना मुश्किल है, ये क्या होती है? ये जो माँ होती है, अपने बच्चों का आसमान होती है ।

उड़ चला बचपन उसका

श्रम के बंधन को तोड़ चला , उड़ चला बचपन उसका | जूठे प्लेटों को तोड़ चला , चुलबुला बचपन उसका | माँ के आँचल से निकल कर , दूर चला , दूर चला बचपन उसका | पतले पतले पैरों पे , टूटी - फटी चप्पल पहने , मुँह मोड़ चला , मुँह मोड़ चला बचपन उसका | पुराने फटे कपड़ो में , पेट में भूख की गर्जन लिए , आँखें मूंदे सो रहा , सो रहा बचपन उसका | अब कोई चिंता नहीं , मालिक की दुकान पर , कल वो न जायेगा , ना मारेगा उसे कोई , ना हसी कोई उड़ाएगा , जीवन की कठोरता , वो और नहीं सेह पायेगा | आज जो सो गया है वो , कोई न उठा पायेगा | छोड़ चला , सब छोड़ चला , सब छोड़ चला बचपन में ही , अब जो पंख लगे हैं उसके , नीले आकाश में उड़ता जायेगा |