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Showing posts from August, 2021

मैं लिखता जाता हूँ

सुबह की नरम हवाओं जैसे दबे पांव चले आते हैं कुछ ख़्याल , कुछ क़िरदार और कुछ कहानियां ये न जाने कितने झरोखे खोल जाते हैं   इन ख़्यालों को मैं एक धागे से जोड़ता जाता हूँ उन्हें जोड़कर मैं उनसे नग़मे बनता हूँ   हर रोज़ … नए किरदार मुझसे मिलने आते हैं कभी अपने कुछ ख़्वाब कभी अपनी चिट्ठियां सुनते हैं   उनकी नज़रों से मैं उनके ख़्वाब देखता हूँ दोपहर की धुप - छाँव में , अपनी खिड़की से … उनकी चिट्ठियों में बांध किस्से सुनता जाता हूँ   हर रोज़ , दिन थक कर शाम की चादर ओढ़ लेती है पर किसी रोज़ जो नींद न आये तो अपने दिल के राज़ बताती है   मैं ख़ामोश बैठ कर सुनता हूँ अपने मनन में छुपाये कई सवाल , कई शिक़ायतें मुझे सुनती है मैं उनके मनन की सारी बातें , सुनता जाता हूँ   आते हैं जब ये सारे मुझसे मिलने मैं अकेला बैठा भी मुसकुराता हूँ कुछ ख़्याल , कुछ क़िरदार और कुछ कहानियां … मैं लिखता जाता हूँ